Ghazal Poetry (page 6)
हमारे सर पे तब कोई जहाँ होता नहीं था
आशू मिश्रा
किसी के बिछड़ने का डर ही नहीं
फ़ारूक़ इंजीनियर
अपना सोचा हुआ अगर हो जाए
अहमद महफ़ूज़
सब ने देखा मुझे उठता हुआ मेरे घर से
अजमल सिद्दीक़ी
दुखती है रूह पाँव को लाचार देख कर
बिमल कृष्ण अश्क
ये लाल डिबिया में जो पड़ी है वो मुँह दिखाई पड़ी रहेगी
आमिर अमीर
मौजों की साज़िशों ने किनारा नहीं दिया
वफ़ा नक़वी
गुल-बदन गुल-एज़ार आ जाओ
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
हश्र-ए-ज़ुल्मात से दिल डरता है
महमूद शाम
कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था
महमूद शाम
बंद हथेली में हैं सब
बीना गोइंदी
इक तेरी बे-रुख़ी से ज़माना ख़फ़ा हुआ
अर्श सिद्दीक़ी
ग़ज़ल की चाहतों अशआ'र की जागीर वाले हैं
वरुन आनन्द
फ़रेब-ए-ख़ूबी-ए-नैरंग देखने के लिए
संजय मिश्रा शौक़
मैं तिरे लुत्फ़-ओ-करम का जब से रस पीने लगा
अख़्तर हाशमी
पा-प्यादा चलता हूँ
अफ़ज़ल हज़ारवी
पेश हर अहद को इक तेग़ का इम्काँ क्यूँ है
अली अकबर अब्बास
न आए काम किसी के जो ज़िंदगी क्या है
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
ख़ुश-शनासी का सिला कर्ब का सहरा हूँ मैं
अब्दुल्लाह कमाल
आँख हो और कोई ख़्वाब न हो
फ़ारूक़ इंजीनियर
रात-दिन लब पे न हो क्यूँकि बयान-ए-देहली
किस में ख़ूबी है जलाने में कि जल जाने हैं
तेरी नज़रों से यार उतर जाऊँ
फिर ये मुमकिन ही नहीं है कि सँभालो मुझ को
नूर अँधेरे की फ़सीलों पे सजा देता हूँ
लोग सब क़ीमती पोशाक पहन कर पहुँचे
जब जब मैं ज़िंदगी की परेशानियों में था
इस दिल से मिरे इश्क़ के अरमाँ को निकालो
ग़म के बे-नूर मज़ारों का गला घोंट आया
दिल-ए-बे-इख़्तियार की ख़ुश्बू