Ghazal Poetry (page 917)
हो गए आँगन जुदा और रास्ते भी बट गए
आनन्द सरूप अंजुम
हवा चली है न पत्ता कोई हिला अब तक
आनन्द सरूप अंजुम
हर शय आनी-जानी है
आनन्द सरूप अंजुम
हर दुआ होगी बे-असर न समझ
आनन्द सरूप अंजुम
आज़माइश में कटी कुछ इम्तिहानों में रही
आनन्द सरूप अंजुम
कँवल जो वो कनार-ए-आबजू न हो
आमिर सुहैल
अदा है ख़्वाब है तस्कीन है तमाशा है
आमिर सुहैल
अब तुम को ही सावन का संदेसा नहीं बनना
आमिर सुहैल
ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं
आलोक श्रीवास्तव
ये और बात दूर रहे मंज़िलों से हम
आलोक श्रीवास्तव
ये और बात दूर रहे मंज़िलों से हम
आलोक श्रीवास्तव
वही आँगन वही खिड़की वही दर याद आता है
आलोक श्रीवास्तव
तुम्हारे पास आते हैं तो साँसें भीग जाती हैं
आलोक श्रीवास्तव
तू वफ़ा कर के भूल जा मुझ को
आलोक श्रीवास्तव
ठीक हुआ जो बिक गए सैनिक मुट्ठी भर दीनारों में
आलोक श्रीवास्तव
रोज़ ख़्वाबों में आ के चल दूँगा
आलोक श्रीवास्तव
मुझे सिरे से पकड़ कर उधेड़ देती है
आलोक श्रीवास्तव
मंज़िल पे ध्यान हम ने ज़रा भी अगर दिया
आलोक श्रीवास्तव
किसी और ने तो बुना नहीं मिरा आसमाँ मिरा आसमाँ
आलोक श्रीवास्तव
झिलमिलाते हुए दिन-रात हमारे ले कर
आलोक श्रीवास्तव
जब भी तक़दीर का हल्का सा इशारा होगा
आलोक श्रीवास्तव
जब भी तक़दीर का हल्का सा इशारा होगा
आलोक श्रीवास्तव
हर बार हुआ है जो वही तो नहीं होगा
आलोक श्रीवास्तव
हमेशा ज़िंदगी की हर कमी को जीते रहते हैं
आलोक श्रीवास्तव
धड़कते साँस लेते रुकते चलते मैं ने देखा है
आलोक श्रीवास्तव
अगर सफ़र में मिरे साथ मेरा यार चले
आलोक श्रीवास्तव
यही अच्छा है जो इस तरह मिटाए कोई
आले रज़ा रज़ा
उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम
आले रज़ा रज़ा
क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है
आले रज़ा रज़ा
मायूस ख़ुद-ब-ख़ुद दिल-ए-उम्मीद-वार है
आले रज़ा रज़ा