Ghazal Poetry (page 460)
मैं सोज़िश-ए-ग़म-ए-दौराँ से यूँ जला ख़ामोश
मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी
मैं सोज़िश-ए-ग़म-ए-दौराँ से यूँ जला ख़ामोश
मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी
लोग बैठे हैं यहाँ होंटों में ख़ंजर ले कर
मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी
लोग बैठे हैं यहाँ हाथों में ख़ंजर ले कर
मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी
फ़ासला जब मुझे एहसास-ए-थकन बख़्शेगा
मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी
फ़ासला जब मुझे एहसास-ए-थकन बख़्शेगा
मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी
दीवाना हूँ बिखरे मोती चुनता हूँ
मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी
दीवाना हूँ बिखरे मोती चुनता हूँ
मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी
अपनी सोचें शिकस्त-ओ-ख़ाम न कर
मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी
अपनी सोचें शिकस्त-ओ-ख़ाम न कर
मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी
अपने ही भाई को हम-साया बनाते क्यूँ हो
मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी
अपने ही भाई को हम-साया बनाते क्यूँ हो
मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी
तेरी चश्म-ए-सितम-ईजाद से डर लगता है
मुशीर झंझान्वी
तिरी बर्क़-पाश-निगाह से तिरे हश्र-ख़ेज़-ख़िराम से
मुशीर झंझान्वी
ताब-ए-नज़र से उन को परेशाँ किए हुए
मुशीर झंझान्वी
सोज़-ओ-गुदाज़-ए-इश्क़ का चर्चा न कर सके
मुशीर झंझान्वी
सितम में भी शान-ए-करम देखते हैं
मुशीर झंझान्वी
नज़रों की ज़िद से यूँ तो मैं ग़ाफ़िल नहीं रहा
मुशीर झंझान्वी
नसीब-ए-इश्क़ मसर्रत कभी नहीं होती
मुशीर झंझान्वी
मोहब्बत में सहर ऐ दिल बराए नाम आती है
मुशीर झंझान्वी
मेरी नज़र नज़र में हैं मंज़र जले हुए
मुशीर झंझान्वी
इश्क़ की शो'ला-मिज़ाजी ख़ुद ही बरसाती है आग
मुशीर झंझान्वी
हौसला दिल का हवादिस में बढ़ा रक्खा है
मुशीर झंझान्वी
दिल बेताब-ए-मर्ग-ए-ना-गहाँ बाक़ी न रह जाए
मुशीर झंझान्वी
ये क्या ज़रूर हमीं को वो आज़माएगा
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
ये कोई दिल तो नहीं है कि ठहर जाएगा
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
यही नहीं कि वो बे-ताब-ओ-बे-क़रार गया
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
सितम भी करता है उस का सिला भी देता है
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
क़दम उठे तो अजब दिल-गुदाज़ मंज़र था
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
नक़्श गुज़रे हुए लम्हों के हैं दिल पर क्या क्या
मुशफ़िक़ ख़्वाजा