Ghazal Poetry (page 459)

किस क़दर प्यास मिली आप के मयख़ाने से

मुश्ताक़ नक़वी

करम में है न सितम में न इल्तिफ़ात में है

मुश्ताक़ नक़वी

जो ख़ुम पर ख़ुम छलकाते हैं होंटों की थकन क्या समझेंगे

मुश्ताक़ नक़वी

हम-सफ़र रातों के साए हो गए

मुश्ताक़ नक़वी

गुलशन भी सजाए हैं इस ने ये झलका है शमशीर में भी

मुश्ताक़ नक़वी

ग़मों ने इस तरह घेरा कभी नहीं होगा

मुश्ताक़ नक़वी

दिलों का हाल वो बे-ए'तिबार क्या जाने

मुश्ताक़ नक़वी

दिल सी वीरानी में साया कोई मेहमान तो है

मुश्ताक़ नक़वी

बहुत पहुँचे तो उन के काकुल-ओ-रुख़्सार तक पहुँचे

मुश्ताक़ नक़वी

याद तो आए कई चेहरे हर इक गाम के बा'द

मुश्ताक़ अंजुम

याद तो आए कई चेहरे हर इक गाम के बा'द

मुश्ताक़ अंजुम

उस की आँखों में हया और इशारा भी है

मुश्ताक़ अंजुम

तेरी उल्फ़त को जगा रक्खा है

मुश्ताक़ अंजुम

शाम-ए-ग़म से शब-ए-अंदोह से चश्म-ए-तर से

मुश्ताक़ अंजुम

शफ़्फ़ाफ़ सत्ह-ए-आब का मंज़र कहाँ गया

मुश्ताक़ अंजुम

सभी तो हैं मगर अब मेहरबाँ कहाँ है कोई

मुश्ताक़ अंजुम

क़हक़हे की मौत है या मौत की आवाज़ है

मुश्ताक़ अंजुम

नाव टूटी हुई बिफरा हुआ दरिया देखा

मुश्ताक़ अंजुम

मिरा दिल अजब शादमानी में गुम है

मुश्ताक़ अंजुम

दिल में कुछ है बयान में कुछ है

मुश्ताक़ अंजुम

बाल-ओ-पर रखते नहीं अज़्म-ए-सफ़र रखते हैं

मुश्ताक़ अंजुम

अश्क पलकों पे जो आएँ तो छुपाए न बने

मुश्ताक़ अंजुम

लहू जला के उजाले लुटा रहा है चराग़

मुश्ताक़ आजिज़

थक के बैठा था कि मंज़िल नज़र आई मुझ को

मुश्ताक़ अहमद नूरी

रिवायतों का बहुत एहतिराम करते हैं

मुश्ताक़ अहमद नूरी

ख़्वाहिश-ए-वस्ल को क़लील न कर

मुश्ताक़ अहमद नूरी

तिरे जहाँ से अलग इक जहान चाहता हूँ

मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी

तिरे जहाँ से अलग इक जहान चाहता हूँ

मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी

शाहकार-ए-हुस्न-ए-फ़ितरत साज़िशों में बट गया

मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी

शाहकार हुस्न-ए-फ़ितरत साज़िशों में बट गया

मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी

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