नसीब-ए-इश्क़ मसर्रत कभी नहीं होती

नसीब-ए-इश्क़ मसर्रत कभी नहीं होती

ये बज़्म वो है जहाँ रौशनी नहीं होती

जबीन-ए-इश्क़ के सज्दे क़ुबूल होते हैं

मिज़ाज-ए-हुस्न में जब बरहमी नहीं होती

समझ चुके हैं असीरी को हम पयाम-ए-अजल

कि ज़िंदगी-ए-क़फ़स ज़िंदगी नहीं होती

मिरे बग़ैर उन्हें कौन जान सकता है

वो यूँ गुज़रते हैं आवाज़ भी नहीं होती

तिरा सितम भी तो है एक पुर्सिश-ए-ख़ामोश

तिरी निगाह कभी अजनबी नहीं होती

बढ़े चलो यही वारफ़्तगी की मंज़िल है

रह-ए-तलब में कभी शाम ही नहीं होती

दिल एक आतिश-ए-ख़ामोश ही सही लेकिन

तुम्हारी याद में कोई कमी नहीं होती

मिरी नज़र में यक़ीनन वो नंग-ए-गुलशन है

अमीन-ए-राज़-ए-चमन जो कली नहीं होती

मिली है राह-ए-तलब में 'मुशीर' सिर्फ़ मुझे

वो ज़िंदगी जो कभी ज़िंदगी नहीं होती

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In Hindi By Famous Poet Mushir Jhanjhanvi. is written by Mushir Jhanjhanvi. Complete Poem in Hindi by Mushir Jhanjhanvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.