बस्ती के हस्सास दिलों को चुभता है
सन्नाटा जब सारी रात नहीं होता
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उस के गुलाबी होंट तो रस में बसे लगे
सिमटती शाम अगर दर्द को जगाएगी
आँखों पर पलकों का बोझ नहीं होता
जिन का यक़ीन राह-ए-सुकूँ की असास है
''दीवानों का नाम अबद तक होता है''
धरती का उपहार मिला जब
रिश्ते नाते टूटे फूटे लगे हैं
सुलगती याद से ख़ूँ अट न जाए
पानी ने जिसे धूप की मिट्टी से बनाया
गर्दिश की रक़ाबत से झगड़े के लिए था
दो-धारी तलवार