आज न हम से पूछिए कैसा कमाल हो गया
हिज्र के ख़ौफ़ में रहे और विसाल हो गया
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जब वक़्त पड़ा था तो जो कुछ हम ने किया था
कभी तो सेहन-ए-अना से निकले कहीं पे दश्त-ए-मलाल आया
रास्ता देर तक सोचता रह गया
इस अक़्ल की मारी नगरी में कभी पानी आग नहीं बनता
सब कुछ खो कर मौज उड़ाना इश्क़ में सीखा
अपने दुख में रोना-धोना आप ही आया
जाम-ए-इश्क़ पी चुके ज़िंदगी भी जी चुके
उस अजनबी से वास्ता ज़रूर था कोई
वही हुआ कि ख़ुद भी जिस का ख़ौफ़ था मुझे
थी अजब ही दास्ताँ जब तमाम हो गई
आँखों में वो ख़्वाब नहीं बसते पहला सा वो हाल नहीं होता
रुकने के लिए दस्त-ए-सितम-गर भी नहीं था