क़ुर्बत के उन दिनों में भी जाना पड़ा मुझे

क़ुर्बत के उन दिनों में भी जाना पड़ा मुझे

आँखों से अपनी राज़ छुपाना पड़ा मुझे

दिल को तो मैं ने झूठ से बहला लिया मगर

थोड़ा बहुत तो शोर मचाना पड़ा मुझे

वो चाहता था खेलना मेरे ही जिस्म से

फिर दरमियान इश्क़ के आना पड़ा मुझे

उस को था शौक़ बीच समुंदर में मरने का

साहिल को खींच खींच के लाना पड़ा मुझे

बे-रंग करनी थी मुझे अपनी ये ज़िंदगी

सो शाइ'री में रंग गिराना पड़ा मुझे

उस का ये मानना था कि मैं उस से बढ़ के हूँ

कर के तबाह ख़ुद को घटाना पड़ा मुझे

तू बन रहा ख़ुदा है तो ये भी हिसाब दे

कितना बिगाड़ कर के बनाना पड़ा मुझे

इस शे'र को सुनाना था उस शख़्स को मुझे

महफ़िल में आप की ये सुनाना पड़ा मुझे

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In Hindi By Famous Poet Muntazir Firozabadi. is written by Muntazir Firozabadi. Complete Poem in Hindi by Muntazir Firozabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.