उस ने मुझ को याद फ़रमाया यक़ीनन
जिस्म में आया हुआ है ज़लज़ला सा
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मुझ से मत बोलो मैं आज भरा बैठा हूँ
सुनाइए वो लतीफ़ा हर एक जाम के साथ
मुस्कुराहट का बीज
बुज़-दिली
धरती पर क्या कम है
यूँ तोड़ न मुद्दत की शनासाई इधर आ
इक मसरफ़-ए-औक़ात-ए-शबीना निकल आया
नीचे की ओर
कहाँ तो पा-ए-सफ़र को राह-ए-हयात कम थी
ग़ौग़ा खटपट चीख़म धाड़
शहर भर में कहीं रौनक़ थी न ताबानी थी