यूँ पलक पर जगमगाना दो घड़ी का ऐश है
रौशनी बन कर मिरे अंदर ही अंदर फैल जा
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Gulzar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(493) Peoples Rate This
ये इज़्तिराब देखना ये इंतिशार देखना
बुज़-दिली
क्या वस्ल की साअत को तरसने के लिए था
मौत का दूसरा नाम
एकता की मिसाल
पहले हम उस की महफ़िल में जाने से कतराए तो
कई सूखे हुए पत्ते हरे मालूम होते हैं
जो होंटों पे मोहर-ए-ख़मोशी लगा दी
उस तरफ़ वो जो नज़र पड़ता है
रोती हुई एक भीड़ मिरे गिर्द खड़ी थी
बे-मौसम फूटबाल
क्या करता मैं हम-अस्रों ने तन्हा मुझ पर छोड़ दिया