ऐ प्यारे मासूम कबूतर
क्यूँ नीले आकाश पे जा कर
नोच लिए दो दर्जन तारे
जग-जग करते रौशन तारे
चाँद की लौ कम होती होगी
उस की बुढ़िया रोती होगी
दाना घर में खा लो दुगना
देखो अब तारे मत चुगना
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Wasi Shah
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Habib Jalib
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उस ने मुझ को याद फ़रमाया यक़ीनन
तूफ़ान-ए-बला से जो मैं बच कर गुज़र आया
बचपन में आकाश को छूता सा लगता था
सुनता हूँ कि तुझ को भी ज़माने से गिला है
नए नज़रिये की तख़्लीक़
बुज़-दिली
कहाँ तो पा-ए-सफ़र को राह-ए-हयात कम थी
सूर-ए-इस्राफ़ील
रोती हुई एक भीड़ मिरे गिर्द खड़ी थी
रहता है हर वक़्त क़लक़ में
मौत का दूसरा नाम
बे-मौसम फूटबाल