ज़ख़्म-ए-तन्हाई में ख़ुशबू-ए-हिना किस की थी
साया दीवार पे मेरा था सदा किस की थी
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रात गए यूँ दिल को जाने सर्द हवाएँ आती हैं
लिया जो उस की निगाहों ने जाएज़ा मेरा
गहराइयों में ज़ेहन की गिर्दाब सा रहा
डुबोने वालों को शर्मिंदा कर चुका हूँगा
पहले रग रग से मिरी ख़ून निचोड़ा उस ने
मैं हरे मौसमों में जलता रहा
ज़िंदगी खिंच गई मुझ से तिरे अबरू की तरह
जी बहलता ही नहीं साँस की झंकारों से
सफ़र भी दूर का है राह आश्ना भी हैं
कर्बला
ज़िंदगी तुझ से हर इक साँस पे समझौता करूँ
ज़िंदगी ख़्वाब की तरह देखी