एक ख़ौफ़-ओ-हिरास पानी में
सारे मंज़र उदास पानी में
भूल बैठा मैं ज़ाइक़े सारे
किस क़दर थी मिठास पानी में
जाने किस रोज़ ग़र्क़ हो जाए
इस ज़मीं की असास पानी में
डूबते हैं कभी उभरते हैं
सब दलील-ओ-क़यास पानी में
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हम बुज़ुर्गों की आन छोड़ आए
ज़ख़्मों को कुरेदा है तो माज़ी निकल आया
गर्द-ओ-ग़ुबार यूँ बढ़ा चेहरा बिखर गया
सूरज और महताब बिखरते जाते हैं
आँखों से मनाज़िर का तसलसुल नहीं टूटा
तिरी यादों की नक़्क़ाशी खुरच कर फेंक आए हैं
गिरते गिरते सँभल रहा हूँ मैं
बाम-ओ-दर पर रेंगती परछाइयाँ