जब उजाला गली से गुज़रने लगा
सब अँधेरों का चेहरा उतरने लगा
दौर बदला तो मैं भी बदल सा गया
बे-गुनाही से अपनी मुकरने लगा
शाम आई तो तेरा ख़याल आ गया
आइना मेरे घर का सँवरने लगा
ख़ुशबुओं की तरह इत्र-दानों में थे
जब हवा चल गई सब बिखरने लगा
इक ग़ज़ल कह सकूँ गर इजाज़त मिले
आँसुओं का ये झरना निखरने लगा