देना मिरा संदेश सखी फिर
पहले छूना उस के पाँव
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हसरत-ए-अहद-ए-वफ़ा बाक़ी है
पुस्तकों में प्रानों में अर्ज़ों में आसमानों में
शाह-बलूत के ऊपर देख
दरिया पे टीकरी से परे ख़ानक़ाह थी
नस नस में नशा प्यार का मामूर हुआ है
घर वाले भी सोए हैं अभी शब भी घनी है
हिजरतों में हूजुरियों के जतन
दिल से हुसूल-ए-ज़र के सभी ज़ोम हट गए
और सफ़र लम्बा हुआ हर गाम पर
अख़रोट खाएँ तापें अँगेठी पे आग आ
नई-निकोर निराली पर
नैन नचंत हैं देख के तुझ को