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एक नाम की भगती एक क़ौल का कलिमा
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रंग और रूप के प्रदीप में खोने दे मुझे
आँखों के आबगीने बहे फूट फूट कर
पास भी रह कर दूर है तो
संगत दिलों की जीवनों मरणों का इर्तिबात
तुझ से मिलने की इल्तिजा कैसी
नैन नशे की चढ़ती नुमू पर
ज़िद न कर मत समय मिलन का उजाड़
हसरत-ए-अहद-ए-वफ़ा बाक़ी है
याद आए तू मुझ को बहुत जब शब कटे जब पौ फटे
पाटी हैं हम ने बिफरी चनाबें तिरे लिए
तू दर्द-ए-ताज़ा के उनवान की महूरत है
फिर यूँ हुआ कि मुझ से वो यूँही बिछड़ गया