नैन नशे की चढ़ती नुमू पर
बाक़ी बदन सब जाम-ओ-सुबू पर
चिड़ियाँ मोर ममूले वादी
हम तुम एक किनार-ए-जू पर
लिक्खी गई तारीख़ हमारी
कूफ़े तेरे काख़-ओ-कू पर
हम ने अपनी कविता गूंधी
मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू पर
कर्बल हर्ब, हरावल हमला
कर्बल आख़िरी ज़र्ब अदू पर
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बेकल है मुख निगाह में बोसों की प्यास है
सूरज सुर्ख़ दिशा में उतरा
हसरत-ए-अहद-ए-वफ़ा बाक़ी है
क़यास बन-बास को मुआ'नी दे
रब्त भी तोड़ा बनी नित की तलब का बेस भी
नई-निकोर निराली पर
नस नस में नशा प्यार का मामूर हुआ है
दरिया पे टीकरी से परे ख़ानक़ाह थी
दिल पे थी सब्त जो तहरीर मिटाई न गई
और अंत में जुदाई बड़ी कर्ब-नाक है
इक ख़ित्ता-ए-ख़ूँ में कहीं दरिया के किनारे