आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह
उस वक़्त तो इस गर्मी ने सब मात की गर्मी
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देख कर कुर्ती गले में सब्ज़ धानी आप की
चाहत के अब इफ़शा-कुन-ए-असरार तो हम हैं
अल्ताफ़ बयाँ हों कब हम से ऐ जान तुम्हारी सूरत के
सब किताबों के खुल गए मअ'नी
आरज़ू ख़ूब है मौक़ा से अगर हो वर्ना
गो सफ़ेदी मू की यूँ रौशन है जूँ आब-ए-हयात
करने लगा दिल तलब जब वो बुत-ए-ख़ुश-मिज़ाज
साक़ी से जो हम ने मय का इक जाम लिया
महफ़िल में हम थे इस तरफ़ वो शोख़ चंचल उस तरफ़
दरिया ओ कोह ओ दश्त ओ हवा अर्ज़ और समा
गए हम जो उल्फ़त की वाँ राह करने
वो मय-कदे में हलावत है रिंद-ए-मय-कश को