साक़ी से जो हम ने मय का इक जाम लिया
पीते ही नशे का ये सर-अंजाम लिया
मालूम नहीं झुक गए या बैठे रहे
या गिर पड़े या किसी ने फिर थाम लिया
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वामाँदगान-ए-राह तो मंज़िल पे जा पड़े
ऐ सफ़-ए-मिज़्गाँ तकल्लुफ़ बर-तरफ़
कहा ये आज हमें फ़हम ने सुनो साहिब
मानी ने जो देखा तिरी तस्वीर का नक़्शा
हुई शक्ल अपनी ये हम-नशीं जो सनम को हम से हिजाब है
साक़ी ये पिला उस को जो हो जाम से वाक़िफ़
क़िस्मत में गर हमारी ये मय है तो साक़िया
दोस्तो क्या क्या दिवाली में नशात-ओ-ऐश है
जो दिल को दीजे तो दिल में ख़ुश हो करे है किस किस तरह से हलचल
याँ तो कुछ अपनी ख़ुशी से नहीं हम आए हुए
क्या दिन थे वो जो वाँ करम-ए-दिल-बराना था
धुआँ कलेजे से मेरे निकला जला जो दिल बस कि रश्क खा कर