Ghazals of Nazeer Qaisar

Ghazals of Nazeer Qaisar
नामनज़ीर क़ैसर
अंग्रेज़ी नामNazeer Qaisar
जन्म की तारीख1945

ये तेरे मिरे हाथ

वो बिस्तर में पड़ी रही

वो आया तो इतना प्यार देगा

तुझ को लिखना है तो ऐसा कोई सफ़हा लिख दे

तंग हुई जाती है ज़मीं इंसानों पर

शाख़ में सब्ज़ा धूप में साया वापस आया

साहिल की रेत चाँद के मुँह पर न डालिए

रात किनारा दरिया दिन

प्याले में जो पानी है

पुरानी मिट्टी से पैकर नया बनाऊँ कोई

पीछे मुड़ के देखना अच्छा लगा

पहले इंकार बहुत करता है

नींद जब ख़्वाब को पुकारती है

मिट्टी से कुछ ख़्वाब उगाने आया हूँ

मिट्टी पे कोई नक़्श भी उभरा न रहेगा

मेरी आँखों को मिरी शक्ल दिखा दे कोई

मैं राख होता गया और चराग़ जलता रहा

ख़्वाब क्या था जो मिरे सर में रहा

ख़ाक उगाती हैं सूरतें क्या क्या

कौन हूँ क्यूँ ज़िंदा हूँ सोचता रहता हूँ

कैसा तारा टूटा मुझ में

कभी हँस कर कभी आँसू बहा कर देख लेता हूँ

जागते हैं सोते हैं

जब खुला बादबान हाथों में

हर नक़्श है वजूद-ए-फ़ना मेरे सामने

घरों में सब्ज़ा छतों पर गुल-ए-सहाब लिए

गलियाँ उदास खिड़कियाँ चुप दर खुले हुए

दुआ का फूल पड़ा रह गया है थाली में

दिया जलाया दोनों ने

दिल-तंग हूँ मकान के अंदर पड़ा हुआ

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