आसमाँ का न रहा और ज़मीं का न रहा

आसमाँ का न रहा और ज़मीं का न रहा

ग़म की जो शाख़ से टूटा वो कहीं का न रहा

इतने बे-रंग उजालों से नज़र गुज़री है

हौसला आँख को अब ख़्वाब-ए-हसीं का न रहा

वक़्त ने सारे भरोसों के शजर काट दिए

अब तो साया भी कोई ख़ाक-नशीं का न रहा

कौन अब उस को उजड़ने से बचा सकता है

हाए वो घर कि जो अपने ही मकीं का न रहा

ऐ 'नज़ीर' अपनी शराफ़त है इसी की क़ाइल

हाँ का पाबंद हुआ जब तू ''नहीं'' का न रहा

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In Hindi By Famous Poet Nazir Fatehpuri. is written by Nazir Fatehpuri. Complete Poem in Hindi by Nazir Fatehpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.