कुछ साथ दिया मेरा दवा ने न दुआ ने
अब जाएँ कहाँ ढूँडने जीने के बहाने
फ़रहाद भी वाक़िफ़ नहीं अब कोह-कनी से
बे-कार हैं फ़र्सूदा मोहब्बत के फ़साने
इस दीदा-ए-पुर-नम में है रक़्साँ तिरा परतव
महताब लुटाता है समुंदर पे ख़ज़ाने
Mohsin Naqvi
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मक़्तल से जब गुज़र के हरीफ़ाना आइए
है आसेबों का साया मैं जहाँ हूँ
अधूरा उंसुर
तह-ए-गिर्दाब तो बचना मिरा दुश्वार है फिर भी
शनाख़्त
तिरी तलाश में जो ख़ुद को भूल आए थे
सीढ़ियाँ
शिकस्ता सिपर
बर्फ़ की मूर्ती
वो कहाँ?