हर एक क़तरा
समुंदरों में समा गया है
वजूद अपना गँवा चुका है
इसी यक़ीं पर
कि अब वो क़तरे से इक समुंदर
की बे-करानी में ढल गया है
मगर यहाँ है
बहुत अकेला जो एक क़तरा
वजूद अपना सँभाल कर मुस्कुरा रहा है
कि उस के अंदर कई समुंदर समा गए हैं
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वो कहाँ?
अधूरा उंसुर
शिकस्ता सिपर
शनाख़्त
तिरी तलाश में जो ख़ुद को भूल आए थे
कुछ साथ दिया मेरा दवा ने न दुआ ने
सीढ़ियाँ
है आसेबों का साया मैं जहाँ हूँ
बर्फ़ की मूर्ती
तह-ए-गिर्दाब तो बचना मिरा दुश्वार है फिर भी
मक़्तल से जब गुज़र के हरीफ़ाना आइए