Ghazals of Pawan Kumar

Ghazals of Pawan Kumar
नामपवन कुमार
अंग्रेज़ी नामPawan Kumar

वो लम्हा जिस से रंग-ए-ज़िन्दगी निखरा हुआ सा

था बर्फ़ आतिश में ढल रहा है

तक़्सीम तज़्किरे को मैं कैसे रक़म करूँ

सुनी हर बात अपने रहनुमा की

रफ़्ता रफ़्ता दर्द-ए-दिल यूँ कम हो जाता है

लहू आँखों में जमता जा रहा है

क्या ज़िंदगी ने रक्खी सौग़ात मेरे हक़ में

क्या सब उस ने सुन कर अन-सुना क्या

क्या नज़र आएगा नाज़िर मेरे

कलेजा रह गया उस वक़्त फट कर

जसारत के रहते भी ख़ामोश होना

हैरत है जिन्हें मेरी तरक़्क़ी पे जलन भी

एक लहराती हुई नद्दी का साहिल हुआ मैं

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