नाख़ुन का रंग सीना-ख़राशी से ये हुआ
सुर्ख़ी शफ़क़ से आती है जैसे हिलाल पर
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फट जाते हैं ज़ख़्म-ए-दिल-ए-बेताब के अंगूर
आए हैं बादा-नोश बड़ी आन-बान पर
ज़ीस्त ने मुर्दा बना रक्खा था मुझ को हिज्र में
बहार आई कर ऐ बाग़बाँ गुलाब क़लम
न तो मैं हूर का मफ़्तूँ न परी का आशिक़
है ख़ाक-बसर सबा मिरे बा'द
कुंदनी रंग का मैं कुश्ता हूँ
तिरे अबरू पे बल आया तो होता
ग़ुंचे को है तिरे दहन की हिर्स
किसी की ज़ुल्फ़ के सौदे में रात की है बसर