न तो मैं हूर का मफ़्तूँ न परी का आशिक़
ख़ाक के पुतले का है ख़ाक का पुतला आशिक़
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फट जाते हैं ज़ख़्म-ए-दिल-ए-बेताब के अंगूर
जाता है कौन आप से जल्लाद की तरफ़
ग़ुंचे को है तिरे दहन की हिर्स
किसी की ज़ुल्फ़ के सौदे में रात की है बसर
है ख़ाक-बसर सबा मिरे बा'द
शब-ए-वस्ल आज वो ताकीद करते हैं मोहब्बत से
नाख़ुन का रंग सीना-ख़राशी से ये हुआ
सुना है अर्श-ए-इलाही इसी को कहते हैं
तिरे अबरू पे बल आया तो होता
आए हैं बादा-नोश बड़ी आन-बान पर
बहार आई कर ऐ बाग़बाँ गुलाब क़लम