शब-ए-वस्ल आज वो ताकीद करते हैं मोहब्बत से
अभी सो रहने दो कुछ रात गुज़रे तो जगा लेना
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जाता है कौन आप से जल्लाद की तरफ़
न तो मैं हूर का मफ़्तूँ न परी का आशिक़
ज़ीस्त ने मुर्दा बना रक्खा था मुझ को हिज्र में
फट जाते हैं ज़ख़्म-ए-दिल-ए-बेताब के अंगूर
सुना है अर्श-ए-इलाही इसी को कहते हैं
आए हैं बादा-नोश बड़ी आन-बान पर
किसी की ज़ुल्फ़ के सौदे में रात की है बसर
कुंदनी रंग का मैं कुश्ता हूँ
नाख़ुन का रंग सीना-ख़राशी से ये हुआ
कौन कहता है तुम अदा न करो