सुना है अर्श-ए-इलाही इसी को कहते हैं
तवाफ़-ए-काबा-ए-दिल हम ने सुब्ह-ओ-शाम किया
Rahat Indori
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Habib Jalib
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(359) Peoples Rate This
जब उस ने मिरा ख़त न छुआ हाथ से अपने
कुंदनी रंग का मैं कुश्ता हूँ
बहार आई कर ऐ बाग़बाँ गुलाब क़लम
फट जाते हैं ज़ख़्म-ए-दिल-ए-बेताब के अंगूर
कौन कहता है तुम अदा न करो
है ख़ाक-बसर सबा मिरे बा'द
शब-ए-वस्ल आज वो ताकीद करते हैं मोहब्बत से
तिरे अबरू पे बल आया तो होता
न तो मैं हूर का मफ़्तूँ न परी का आशिक़
किसी की ज़ुल्फ़ के सौदे में रात की है बसर
ज़ीस्त ने मुर्दा बना रक्खा था मुझ को हिज्र में
ग़ुंचे को है तिरे दहन की हिर्स