जो डूबना है तो इतने सुकून से डूबो
कि आस-पास की लहरों को भी पता न लगे
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बजते हुए घुंघरू थे उड़ती हुई तानें थीं
इतना सन्नाटा है बस्ती में कि डर जाएगा
दर-ओ-दीवार पे हिजरत के निशाँ देख आएँ
पिया करते हैं छुप कर शैख़ जी रोज़ाना रोज़ाना
रास्ता देख के चल वर्ना ये दिन ऐसे हैं
ये ज़िंदगी है कि आसेब का सफ़र है मियाँ
टूटे हुए ख़्वाबों की चुभन कम नहीं होती
तिरी बेवफ़ाई के बाद भी मिरे दिल का प्यार नहीं गया
कितने दिनों के प्यासे होंगे यारो सोचो तो
आज बरसों में तो क़िस्मत से मुलाक़ात हुई
मुसाफ़िरों का कभी ए'तिबार मत करना