जिस दिन से बने हो तुम मसीहा
हाल और ख़राब हो गया है
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दिन की बेदर्द थकन चेहरे पे ले कर मत जा
ये वो बस्ती ही नहीं
काग़ज़ काग़ज़ धूल उड़ेगी फ़न बंजर हो जाएगा
दिल की आग कहाँ ले जाते जलती बुझती छोड़ चले
शहर-ए-ग़ज़ल में धूल उड़ेगी फ़न बंजर हो जाएगा
दिल बे-तब-ओ-ताब हो गया है
दर-ओ-दीवार पे हिजरत के निशाँ देख आएँ
मैं पिछली रात क्या जाने कहाँ था
ज़ुल्फ़ घटा बन कर रह जाए आँख कँवल हो जाए
पिया करते हैं छुप कर शैख़ जी रोज़ाना रोज़ाना
वो फूल जो मिरे दामन से हो गए मंसूब
फिर मिरे सर पे कड़ी धूप की बौछार गिरी