जाती हुई मय्यत देख के भी वल्लाह तुम उठ कर आ न सके
दो चार क़दम तो दुश्मन भी तकलीफ़ गवारा करते हैं
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इक हसीन ला-जवाब देखा है
कुछ तो है बात जो आती है क़ज़ा रुक रुक के
छोटी सी बे-रुख़ी पे शिकायत की बात है
मिरे ख़ुदा मुझे थोड़ी सी ज़िंदगी दे दे
यारब तिरे करम से ये सौदा करेंगे हम
तेरे ख़्वाबों में मोहब्बत की दुहाई दूँगा
राह में उन से मुलाक़ात हो गई
बा-ख़बर था इक नज़र में दो-जहाँ ले जाएगा
रफ़्ता रफ़्ता वो हमारे दिल के अरमाँ हो गए
ये दर्द-ए-हिज्र और इस पर सहर नहीं होती
वो सितम-गर है ख़यालात समझने वाला