क़ुसूर सब है ये ना-मो'तबर अलामत का

क़ुसूर सब है ये ना-मो'तबर अलामत का

उलझ के रह गया मफ़्हूम ही इबारत का

तुम्हारे सामने मंज़र कहाँ क़यामत का

अज़ाब सहते कभी काश तुम भी हिजरत का

क़लम के साथ ज़बाँ भी तराश लो मेरी

ये इम्तिहान भी ले लो मिरी सदाक़त का

कोई सुनाए तो आ कर हदीस-ए-शब-ज़दगाँ

अभी बुझा नहीं शो'ला मिरी समाअ'त का

मिरी हयात की वुसअ'त पे हो गया है मुहीत

वो एक पल जो अमीं है तिरी रिफ़ाक़त का

है एक दाना-ए-गंदुम की फ़ित्ना-सामानी

यही है नुक्ता-ए-आग़ाज़ अपनी हिजरत का

तबाहियों पे 'क़मर' चुप हैं लोग बस्ती के

है इंतिज़ार अभी शायद किसी करामत का

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In Hindi By Famous Poet Qamar Sanbhali. is written by Qamar Sanbhali. Complete Poem in Hindi by Qamar Sanbhali. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.