नौहा उन का नहीं गुज़र गए जो
ज़िंदगी की उदास राहों से
फेंक कर बोझ अपने काँधों का
नौहा उन का जो अब भी जीते हैं
दर्द को ज़िंदगी बनाए हुए
मरने वालों का बोझ उठाए हुए
Wasi Shah
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Gulzar
Javed Akhtar
Anwar Masood
Rahat Indori
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
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अच्छा ये करम हम पे तो सय्याद करे है
गली गली मिरी वहशत लिए फिरे है मुझे
न कोई दोस्त न दुश्मन अजीब दुनिया है
ज़िंदगी तुझ से बिछड़ कर मैं जिया एक बरस
न फूल हूँ न सितारा हूँ और न शो'ला हूँ
नज्म-ए-सहर
घर को अब दश्त-ए-कर्बला लिक्खूँ
दौलत-ए-हर्फ़-ओ-बयाँ साथ लिए फिरते हैं
शहर-ए-शोर-ओ-शर तन्हा घर के बाम-ओ-दर तन्हा
फिर फ़िक्र-ए-सुख़न मैं कर रहा हूँ
बुझा बुझा के जलाता है दिल का शो'ला कौन
चाँद वीरान है सदियों से मिरे दिल की तरह