ज़रूरत उस की हमें है मगर ये ध्यान रहे
कहाँ वो ग़ैर-ज़रूरी कहाँ ज़रूरी है
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Rahat Indori
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(568) Peoples Rate This
तअज्जुब उन को है क्यूँ मेरी ख़ुद-कलामी पर
जब सामने की बात ही उलझी हुई मिले
अलग हैं हम कि जुदा अपनी रह-गुज़र में हैं
उन से बचना कि बिछाते हैं पनाहें पहले
फिर इस के बाद रास्ता हमवार हो गया
किसी इंसान को अपना नहीं रहने देते
कैसे जानूँ कि जहाँ ख़्वाब-नुमा होता है
एक रहने से यहाँ वो मावरा कैसे हुआ
एक लम्हे में ज़माना हुआ तख़्लीक़ 'मलाल'
क्यूँ हर उरूज को यहाँ आख़िर ज़वाल है
फ़क़त ज़मीन से रिश्ते को उस्तुवार किया