उन से बचना कि बिछाते हैं पनाहें पहले
फिर यही लोग कहीं का नहीं रहने देते
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Habib Jalib
Rahat Indori
Parveen Shakir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(512) Peoples Rate This
वो हक़ीक़त में एक लम्हा था
बराए नाम सही साएबाँ ज़रूरी है
शिकस्ता-पाई से होती हैं बस्तियाँ आबाद
रात अंदर उतर के देखा है
एक रहने से यहाँ वो मावरा कैसे हुआ
अलग हैं हम कि जुदा अपनी रह-गुज़र में हैं
न जाने क्यूँ सदा होता है एक सा अंजाम
फ़क़त ज़मीन से रिश्ते को उस्तुवार किया
एक लम्हे में ज़माना हुआ तख़्लीक़ 'मलाल'
जब सामने की बात ही उलझी हुई मिले
सब सवालों के जवाब एक से हो सकते हैं