एक रहने से यहाँ वो मावरा कैसे हुआ
सब से पहला आदमी ख़ुद से जुदा कैसे हुआ
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एक लम्हे में ज़माना हुआ तख़्लीक़ 'मलाल'
निकल गए थे जो सहरा में अपने इतनी दूर
फिर इस के बाद रास्ता हमवार हो गया
वो हक़ीक़त में एक लम्हा था
तमाम वहम ओ गुमाँ है तो हम भी धोका हैं
जिसे सुनाओगे पहले ही सुन चुका होगा
जब सामने की बात ही उलझी हुई मिले
कैसे जानूँ कि जहाँ ख़्वाब-नुमा होता है
ज़माने भर से उलझते हैं जिस की जानिब से
उन से बचना कि बिछाते हैं पनाहें पहले
क्यूँ हर उरूज को यहाँ आख़िर ज़वाल है