सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी (page 2)

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी (page 2)
नामसरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
अंग्रेज़ी नामSardar Genda Singh Mashriqi

उन बुतों से रब्त तोड़ा चाहिए

तुम्हें शब-ए-व'अदा दर्द-ए-सर था ये सब हैं बे-ए'तिबार बातें

तेरी महफ़िल में जितने ऐ सितम-गर जाने वाले हैं

रौनक़-ए-अहद-ए-जवानी अलविदा'अ

रहता है कब इक रविश पर आसमाँ

रह कर मकान में मिरे मेहमान जाइए

नासेहा आया नसीहत है सुनाने के लिए

नाला शब-ए-फ़िराक़ जो कोई निकल गया

मिरा ये ज़ख़्म सीने का कहीं भरता है सीने से

मैं वो आतिश-ए-नफ़स हूँ आग अभी

कुछ बद-गुमानियाँ हैं कुछ बद-ज़बानियाँ हैं

कोई उस से नहीं कहता कि ये क्या बेवफ़ाई है

की मय से हज़ार बार तौबा

काली काली घटा बरसती है

काली घटा कब आएगी फ़स्ल-ए-बहार में

जो तुम्हें याद किया करते हैं

जिस का राहिब शैख़ हो बुत-ख़ाना ऐसा चाहिए

इलाही ख़ैर हो वो आज क्यूँ कर तन के बैठे हैं

हैं बहुत देखे चाहने वाले

देखा किसी का हम ने न ऐसा सुना दिमाग़

बोसा देते हो अगर तुम मुझ को दो दो सब के दो

ब-जुज़ साया तन-ए-लाग़र को मेरे कोई क्या समझे

अगर उल्टी भी हो ऐ 'मशरिक़ी' तदबीर सीधी हो

आ किधर है तू साक़ी-ए-मख़मूर

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