पैहम जल में रहती हूँ
पैहम जल में रहती हूँ
फिर भी सूखी सूखी हूँ
दामन ऐसा फाड़ा है
नाख़ूनों से सहमी हूँ
निभ में लाखों तारे हैं
इक तारे सी मैं भी हूँ
ताना टूटा है मन का
बाना पकड़े बैठी हूँ
कछवा है मुझ में 'सीमा'
हौले हौले चलती हूँ
Your Thoughts and Comments