रात दिन
मौत है मसरूफ़-ए-मशक़्क़त
मिरे अज्दाद की मानिंद
कि जो एड़ियाँ घिस घिस के जिए
और मरे
ज़िंदगी रहम के क़ाबिल
ये तस्लीम
मगर
मौत भी कितनी शिकस्ता है
ज़रा देखो तो
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Wasi Shah
Parveen Shakir
Anwar Masood
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
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दिल जहाँ भी डूबा है उन की याद आई है
नक़दी कहाँ से आएगी
सच का लम्हा जब भी नाज़िल होता है
ज़िंदगी है मुख़्तसर आहिस्ता चल
शहर-ए-ख़ूबाँ से जो हम अब भी गुज़र आते हैं
मिज़ाज-ए-गर्दिश-ए-दौराँ वही समझते हैं
थी कुछ न ख़ता फिर भी पशेमान रहे हैं
बदन के रूप का एजाज़ अंग अंग थी वो
मेरी चाहत पे न इल्ज़ाम लगाओ लोगो
आख़िरी क़ाफ़िला
हमारे हाल-ए-ज़बूँ पर मलाल है कितना
दुनिया तो ये कहती है