वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे
दोस्तो दिल कहीं ज़िन्हार न आने पाए
ईफ़ा-ए-व'अदा आप से ऐ यार हो चुका
गर्दिश-ए-चर्ख़ से क़याम नहीं
क़द्र-दाँ कोई न असफ़ल है न आ'ला अपना
वक़्त-ए-आख़िर हमें दीदार दिखाया न गया
बोलिए करता हूँ मिन्नत आप की
जल्वा-ए-अर्बाब-ए-दुनिया देखिए
आतिश-ए-बाग़ ऐसे भड़की है कि जलती है हवा
मैं सियह-रू अपने ख़ालिक़ से जो ने'मत माँगता
बशर रोज़-ए-अज़ल से शेफ़्ता है शान-ओ-शौकत का
आबला ख़ार-ए-सर-ए-मिज़्गाँ ने फोड़ा साँप का