हम
कहाँ के अय्यूब थे?
जो रिज़्क़ की तलाश में निकले
हशरात को
हमारे बदन का पता
दे दिया गया
हमें अपने आप का बोझ
गवारा नहीं
किसी की गुज़र-औक़ात का इंहिसार
हम पे क्यूँ हो?
Javed Akhtar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Habib Jalib
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Gulzar
Wasi Shah
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जागते दिन की गली में रात आँखें मल रही है
असबाब-ए-हस्त रह में लुटाना पड़ा मुझे
ख़ुद-कुशी करने का अगला मंसूबा
जहन्नम से पहले जहन्नम
ख़ुदा क़हक़हा लगाता है
इस नए साल के स्वागत के लिए पहले से
एल-ओ-वी-ई
सब्र-आज़मा
आसमाँ एक किनारे से उठा सकती हूँ
तू हर्फ़-ए-आख़िरी मिरा क़िस्सा तमाम है
बे-ख़याली में कहा था कि शनासाई नहीं
महीने के अख़ीर दिनों में