कुछ और कोई अब्र-ए-बहारी को न समझे
उड़ता है ये रूमाल मिरे दीदा-ए-तर का
Wasi Shah
Jaun Eliya
Gulzar
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Rahat Indori
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
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Mir Taqi Mir
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बे-जुर्म-ओ-बेगुनाह ग़रीब-उल-वतन किया
कट गई रात सुब्ह होती है
तूर-ए-दिल ख़राब बना पर बिगड़ गया
साक़िया हो गर्मी-ए-सोहबत ज़रा बरसात में
नहीं दो क़ुब्बा-ए-पिस्तान शोख़-ओ-शंग सीने पर
होश का अंदाज़ा बे-होशी में है
हिज्र है दिल में ख़ाक उड़ती है
हम ने जो उस की मिदहतों से कान भर दिए
रंगत उसे पसंद है ऐ नस्तरन सफ़ेद
वो बुत मुब्तला-तलब मेहर-तलब वफ़ा-तलब
सीने में आग आँख सू-ए-दर लगी रहे