अब और तब

न पूछ ऐ हम-नशीं कॉलेज में आ कर हम ने क्या देखा

ज़मीं बदली हुई देखी फ़लक बदला हुआ देखा

न वो पहली सी महफ़िल है न मीना है न साक़ी है

कुतुब-ख़ाने में लेकिन अब तलक तलवार बाक़ी है

वही तलवार जो बाबर के वक़्तों की निशानी है

वही मरहूम बाबर याद जिस की ग़ैर फ़ानी है

ज़मीं पर लेक्चरर कुछ तैरते फिरते नज़र आए

और उन की ''गाऊन'' से कंधों पे दो शहपर नज़र आए

मगर इन में मिरे उस्ताद-ए-देरीना बहुत कम थे

जो दो इक थे भी वो मसरूफ़-ए-सद-अफ़्कार-ए-पैहम थे

वो ज़ीने ही में टकराने की हसरत रह गई दिल में

सुना वन-वे ट्रैफ़िक हो गई ऊपर की मंज़िल में

अगरचे आज-कल कॉलेज में वाक़िफ़ हैं हमारे कम

हमें दीवार-ओ-दर पहचानते हैं और उन को हम

बुलंदी पर अलग सब से खड़ा ''टावर' ये कहता है

बदलता है ज़माना मेरा अंदाज़ एक रहता है

फ़ना तालीम दरस-ए-बे-ख़ुदी हूँ इस ज़माने से

कि मजनूँ लाम अलिफ़ लिखता था दीवार-ए-दबिस्ताँ पर

मगर ''टावर'' की साअ'त के भी बाज़ू ख़ूब चलते हैं

कबूतर बैठ कर सूइयों पे वक़्त उस का बदलते हैं

उसी मालिक को फिर हलवे की दावत पर बुलाते हैं

वो हलवा ख़ूब खाते हैं उसे भी कुछ खिलाते हैं

अगर वो ये कहे इस में तो ज़हरीली दवाई है

मिरा दिल जानता है इस में अंडे की मिठाई है

फिर इस के बअ'द बहर-ए-ख़ुद-कुशी तय्यार होते हैं

वो हलवा बीच में और गर्द उस के यार होते हैं

वो पूछे गर कहाँ से किस तरह आया है ये हलवा

तो डब्बा पेश कर के कह दिया इस का है सब जल्वा

किसी कंजूस के कमरे में जा कर बैठ जाते हैं

और उस के नाम पर टुक शाप से चीज़ें मंगाते हैं

बिचारा 'जाफ़री' मुद्दत के बअ'द आया है कॉलेज में

इज़ाफ़ा चाहता है अपनी अंग्रेज़ी की नॉलिज में

तिरे सीने पे जब यारान-ए-ख़ुश आएँ की महफ़िल हो

तो ऐ 'ओवल' उसे मत भूल जाना वो भी शामिल हो

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In Hindi By Famous Poet Syed Mohammad Jafri. is written by Syed Mohammad Jafri. Complete Poem in Hindi by Syed Mohammad Jafri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.