धूप Poetry (page 16)

यहाँ है धूप वहाँ साए हैं चले जाओ

साबिर ज़फ़र

यहाँ है धूप वहाँ साए हैं चले जाओ

साबिर ज़फ़र

वो धूप वो गलियाँ वही उलझन नज़र आए

साबिर वसीम

इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है

साबिर दत्त

मुझ से पहले मिरे वतीरे देख

साबिर अदीब

कैसी मअनी की क़बा रिश्तों को पहनाई गई

साबिर अदीब

तिरे तसव्वुर की धूप ओढ़े खड़ा हूँ छत पर

साबिर

चिलचिलाती-धूप थी लेकिन था साया हम-क़दम

साबिर

तुम्हारे आलम से मेरा आलम ज़रा अलग है

साबिर

ख़ूबियों को मस्ख़ कर के ऐब जैसा कर दिया

साबिर

क़तरा क़तरा तिश्नगी

सबा इकराम

सोना था जितना अहद-ए-जवानी में सो लिए

सबा अकबराबादी

हर एक जिस्म पे बस एक ही से गहने लगे

रिन्द साग़री

जब याद आया तेरा महकता बदन मुझे

रिफ़अत अल हुसैनी

वो दिल कि था कभी सरसब्ज़ खेतियों की तरह

रियाज़ मजीद

जब अगले साल यही वक़्त आ रहा होगा

रियाज़ मजीद

सफ़र में रस्ता बदलने के फ़न से वाक़िफ़ है

रेहाना रूही

जुनून-ए-इश्क़ में सद-चाक होना पड़ता है

रेहाना रूही

शब ज़रा देर से गुज़रेगी न घबरा ऐ दिल

रज़ी रज़ीउद्दीन

हक़ीक़तों का पता दे के ख़ुद सराब हुआ

रज़ी मुजतबा

कुछ लोग समझने ही को तयार नहीं थे

राज़ी अख्तर शौक़

दो बादल आपस में मिले थे फिर ऐसी बरसात हुई

राज़ी अख्तर शौक़

ख़याल-ए-हुस्न में यूँ ज़िंदगी तमाम हुई

रज़ा लखनवी

सवाद-ए-शहर में थोड़ी सी ये जो जन्नत है

रज़ा अश्क

क्या सितम कर गई ऐ दोस्त तिरी चश्म-ए-करम

रविश सिद्दीक़ी

है ज़ेर-ए-ज़मीं साया तो बाला-ए-ज़मीं धूप

रौनक़ टोंकवी

ज़िंदगी के कैसे कैसे हौसले पथरा गए

रौनक़ रज़ा

आँखों प अभी तोहमत-ए-बीनाई कहाँ है

रऊफ़ ख़ैर

दोस्त के शहर में जब मैं पहुँचा शहर का मंज़र अच्छा था

रासिख़ फारानी

दिल जिस से काँपता है वो साअत भी आएगी

राशिद मुफ़्ती

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