कैसी मअनी की क़बा रिश्तों को पहनाई गई

कैसी मअनी की क़बा रिश्तों को पहनाई गई

एक ही लम्हे में बरसों की शनासाई गई

हर दर-ओ-दीवार पर बचपन जवानी नक़्श थे

कब मिरे घर से मिरे माज़ी की दाराई गई

इस क़दर ऊँची हुई दीवार-ए-नफ़रत हर तरफ़

आज हर इंसाँ से इंसाँ की पज़ीराई गई

हर नया दिन धूप की किरनों से तप कर आए है

जिस्म से ठंडक गई आँखों से बीनाई गई

अब कहाँ वो मस्तियाँ सरगोशियाँ गुल-रेज़ियाँ

दामन-ए-सहरा से जो आती थी पुरवाई गई

वक़्त की सौग़ात है न हम हैं हम न तुम हो तुम

ज़ेहन से सोचें गईं होंटों से सच्चाई गई

आज फिर है हुक्मरानी तीरगी की हर तरफ़

रौशनी इक पल को 'साबिर' आई और आई गई

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In Hindi By Famous Poet Sabir Adeeb . is written by Sabir Adeeb . Complete Poem in Hindi by Sabir Adeeb . Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.