इस क़दर ऊँची हुई दीवार-ए-नफ़रत हर तरफ़
आज हर इंसाँ से इंसाँ की पज़ीराई गई
Rahat Indori
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Gulzar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(453) Peoples Rate This
क्या पता क्या था उधर और क्या न था
मैं अकेला हूँ तू भी तन्हा है
तिलिस्म टूट गया शब का मैं भी घर को चलूँ
कैसी मअनी की क़बा रिश्तों को पहनाई गई
तुझे तलाश है जिस की गुज़र गया कब का
मुझ से पहले मिरे वतीरे देख