साथ Poetry (page 50)

ख़्वाबों के साथ ज़ेहन की अंगड़ाइयाँ भी हैं

हुरमतुल इकराम

दिल को दरून-ए-ख़्वाब का मौसम बोझल रखता है

हुमैरा रहमान

हवा के साथ ये कैसा मोआमला हुआ है

हुमैरा राहत

यादें चलें ख़याल चला अश्क-ए-तर चले

होश तिर्मिज़ी

इस जहाँ में तो अपना साया भी

हिमायत अली शाएर

मुद्दत के बाद

हिमायत अली शाएर

जवाब

हिमायत अली शाएर

अन-कही

हिमायत अली शाएर

साए चमक रहे थे सियासत की बात थी

हिमायत अली शाएर

इस शहर-ए-ख़ुफ़्तगाँ में कोई तो अज़ान दे

हिमायत अली शाएर

आए थे तेरे शहर में कितनी लगन से हम

हिमायत अली शाएर

मिरी दास्ताँ भी अजीब है वो क़दम क़दम मिरे साथ था

हिलाल फ़रीद

ये विसाल ओ हिज्र का मसअला तो मिरी समझ में न आ सका

हिलाल फ़रीद

मुझे फ़रेब-ए-वफ़ा दे के दम में लाना था

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

तड़प के हाल सुनाया तो आँख भर आई

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

बहुत कठिन है डगर थोड़ी दूर साथ चलो

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

अपने कहते हैं कोई बात तो दुख होता है

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

मैं ने अंजाम से पहले न पलट कर देखा

हीरा लाल फ़लक देहलवी

अश्क-ए-ग़म वो है जो दुनिया को दिखा भी न सकूँ

हीरा लाल फ़लक देहलवी

आह-ए-ज़िंदाँ में जो की चर्ख़ पे आवाज़ गई

हीरा लाल फ़लक देहलवी

उतर के नीचे कभी मेरे साथ भी तो चलो

हज़ीं लुधियानवी

उम्र भर बहते हैं ग़म के तुंद-रौ धारों के साथ

हज़ीं लुधियानवी

क़ल्ब को बर्फ़-आश्ना न करो

हज़ीं लुधियानवी

इस का नहीं है ग़म कोई, जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

हज़ीं तुम अपनी कभी वज़्अ भी सँवारोगे

हज़ीं लुधियानवी

कई सितारे यहाँ टूटते बिखरते हैं

हयात लखनवी

ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है

हातिम अली मेहर

उस ज़ुल्फ़ के सौदे का ख़लल जाए तो अच्छा

हातिम अली मेहर

सर झुकाता नहीं कभी शीशा

हातिम अली मेहर

रंग-ए-सोहबत बदलते जाते हैं

हातिम अली मेहर

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