मैं ने अंजाम से पहले न पलट कर देखा
दूर तक साथ मिरे मंज़िल-ए-आग़ाज़ गई
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मैं तिरा जल्वा तू मेरा दिल है मेरे हम-नशीं
देखूँगा किस क़दर तिरी रहमत में जोश है
रौशन है फ़ज़ा शम्स कोई है न क़मर है
मेरी हस्ती में मिरी ज़ीस्त में शामिल होना
ऐ शाम-ए-ग़म की गहरी ख़मोशी तुझे सलाम
आरास्ता बज़्म-ए-ऐश हुई अब रिंद पिएँगे खुल खुल के
तन को मिट्टी नफ़स को हवा ले गई
साक़िया ये जो तुझ को घेरे हैं
चराग़-ए-इल्म रौशन-दिल है तेरा
क्या कहें क्यूँकर हुआ तूफ़ान में पैदा क़फ़स
ज़माना देखता है हंस के चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ मेरी