ढूँढ हम उन को परेशान बने बैठे हैं
वो तो पर्दा लिए इंसान बने बैठे हैं
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जहाँ बात वहदत की गहरी रहेगी
आप को भूल के मैं याद-ए-ख़ुदा करता हूँ
बंदे का पर्दा शान-ए-इलाही छुपी हुई
याद-ए-ख़ुदा से आया न ईमाँ किसी तरह
हम अपने आप तालिब मतलूब आप हम हैं
अपना पता मुझे बता बहर-ए-ख़ुदा तू कौन है
ढूँढता हक़ को दर-ब-दर है तू
अयाँ हो आप बेगाना बनाया
आशिक़ी के आश्कारे हो चुके
ग़फ़लत अजब है हम को दम जिस का मारते हैं
अजब भूल ओ हैरत जो मख़्लूक़ को है