हम अपने आप तालिब मतलूब आप हम हैं
इस खेल में हमेशा हम ख़ुद को हारते हैं
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
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जहाँ बात वहदत की गहरी रहेगी
याद-ए-ख़ुदा से आया न ईमाँ किसी तरह
आशिक़ी के आश्कारे हो चुके
ढूँढता हक़ को दर-ब-दर है तू
अजब भूल ओ हैरत जो मख़्लूक़ को है
ग़फ़लत अजब है हम को दम जिस का मारते हैं
शिर्क का पर्दा उठाया यार ने
अपना पता मुझे बता बहर-ए-ख़ुदा तू कौन है
ढूँढ हम उन को परेशान बने बैठे हैं
अयाँ हो आप बेगाना बनाया
आप को भूल के मैं याद-ए-ख़ुदा करता हूँ